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बचपन की याद ।

*पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें ।* *पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ।* *"पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था"।*  *कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था ।* *हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था ।* *माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी , न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी* ।  *सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।*  *एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।*  *स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है ?* *पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी ,* *"पीटने" वाला औ...

मानवता गरीब से सीखो

*मानवता गरीब से सीखी *  वासु भाई और वीणा बेन, दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था वे पेशे से चिकित्सक थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता ,छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं ।         आज उनका इंदौर उज्जैन जाने का विचार था ।दोनों साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे ।वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ ,और बढ़ते बढ़ते वृक्ष बना। दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया  । 2 साल हो गए ,संतान कोई थी नहीं ,इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते थे ।             विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया , बैंक से लोन लिया ।वीणा  बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई  डाक्टर  आफ मेडिसिन थे ।इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था ।              आज इंदौर जाने का  कार्यक्रम बनाया था । जब  मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे वासु भाई ने  इंदौर के बारे में बहुत सुना था , नई नई  वस्तु है। खाने के शौकीन थे इंदौर के सराफा ...