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महंगाई की मार

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महंगाई की मार सब पर पड़ी  झोला ले के  भैइ, मै बजार चला. 5 सौ का नोट  था , जेब मे पडा . भिंडी  या हो लौकी  किलो मे नहि . लेनी थी  सब्जी  चलो ग्राम , पाव  सही . दाल ने तो हमको  दल ही  दिया. आटा  चावल  ,सलाद  फ़ल न लिया. इमेज क्रेडिट- jio savan  आगे तेल ने भी सबका , निकला है तेल ढूँढता  फ़िर रहा हूं , बाजार  मे सेल. गरीबो  कि रोटी  छिन हि गई  राजनीती  इसी  मे फलती रही  सरकारे  तो आती जाती रहेंगी।  गरीबी में जनता जीती रहेगी  महंगाई की मार तो सब पर बराबर पड़ी  कोई छोटा बड़ा इसने छोड़ा नहीं।-2   विनय सेंगर।