कर्म ही पूजा है।
Vinay Sengar Inspirational 2 कर्म ही पूजा है। 2 mins ये कहानी एक आम व्यापारी की है जो लॉक डाउन में अपने परिवार के भरण पोषण के लिए अपना व्यापार बदलने में गुरेज नहीं करना है। बिना किसी बहाने के या किसी को कोसे आप जीवकोपार्जन कर सकते है। हुकुमचंद ने अभी अभी स्नातक किया था, उसका एक मित्र चरणदास के पिता शहर के मशहूर व्यापारी थे, हुकुमचंद जब अपने मित्र के घर जाता तो उसके पिता के ठाठ देखकर उसने भविष्य में स्वर्णकार बनने के बारे में सोचता। स्नातक करने के उपरांत हुकुमचंद अपने मित्र के साथ उसके पिता से स्वर्णकार की बारीकियां सीखने लगा, तकरीबन एक वर्ष हुकुमचंद अपने मित्र के यहां से सीखे गए हुनर के दम पर एक छोटी सी स्वर्णाभूषण की दुकान खोल पाया जिसमे वो कानों की बाली, पायल आदि छोटे स्वर्णाभूषण को बेच और उनकी मरम्मत कर रहा था। पर अभी भी समस्याएं कम नहीं थी क्योंकि स्वर्णकार को पैसे की सख़्त आवश्यकता होती है जो कि हुकुमचंद के पास था नहीं कम पूंजी पर भी हुकुमचंद अपना व्यापार जमाने में सफल रहा। तभी एकाएक टीवी चैनलों पर खबर प्रसारित की गई की सम्पूर्ण भारत में लॉक ...