आखिर कब तक मौत के मुँह में जायेंगे
कुछ दिन पहले 26 साल की रेखा को एक साँप ने काटा तो उसके परिवार को लगा की वे अपनी लाडली बिटिया को खो देंगे ये खबर समाचार पत्र की सुर्खियों में रही थी । परन्तु वो तो बच गई, ये किसी चमत्कार से कम नहीं था। एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश मे आज भी हर साल 58,000 लोग सर्पदंश (साँप के काटने) से मारे जाते हैं। इनमें ज़्यादातर किसान, मज़दूर या आदिवासी समाज के लोग होते हैं। सर्पदंश से होने वाली 94% मौतें ग्रामीण भारत में हो रही हैं, शायद इसीलिए इतनी बड़ी समस्या पर देशभर में आज भी चुप्पी है। पर जब आप इसपर आवाज़ उठाएंगे तो इस समस्या का सामना कर रहे ग्रामीण भारत के लोगों को शायद कोई अनसुना नहीं |
जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अगर समय पर एंटीवेनम इंजेक्शन मिल जाए तो सर्पदंश से उतनी मौतें ना हों। पर गांव के स्वास्थ्य केंद्रों में इसी इंजेक्शन की सबसे ज़्यादा कमी होती है। लोग इंजेक्शन के लिए भटकते रह जाते हैं और अंत में जान गंवा देते हैं। जानकारी का आभाव भी एक समस्या है। कई जगह लोग अब भी सर्पदंश के इलाज में लेप, जड़ीबूटी, इत्यादि इस्तेमाल करते हैं जो कि डॉक्टरों द्वारा मना किया जाता है। आप चाहें तो गाँवों में इंजेक्शन की कमी नहीं होगी। और सांप के काटने पर इलाज होगा, खिलवाड़ नहीं।ताकि कोई इलाज की कमी से अपने माता-पिता, भाई-बहन से ना बिछड़े। सर्पदंश के विषय पर निम्नलिखित समाधान की मांग कर सकते हैं ताकि आपका गाँव/शहर, आपके अपने भी सुरक्षित रहें:- 1. प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्रों में सर्पदंश के उपचार की उपलब्धि को जाँचे, जहाँ कमी हो वहां पर्याप्त मात्रा में एंटीवेनम इंजेक्शन उपलब्ध कराएं। अगर इस समस्या से 94% गाँव के बजाए शहर के लोग प्रभावित होते तो क्या इसपर इतनी चुप्पी होती? 3 . इस विषय पर सरकार को चाहिए की वो ग्रामीण इलाको में अगर चिकत्सक नियुक्त नहीं कर सकती है तो काम से काम first aid कोर्स करवाकर कुछ ग्रामीण लडको को तैयार किया जा सकता है जिससे हो काम से काम first aid देकर चिकित्सक तक पीड़ित व्यक्ति को पंहुचा सके। विनय सेंगर |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें