सरकार घाटे का बहाना बनाकर सरकारी संस्थानों को बेच रही है क्यों

सरकार घाटे का बहाना बनाकर सरकारी संस्थानों को बेच क्यों रही है? आज आम जनता प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटलों के लूट तंत्र से पीड़ित है हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकारें बनाई है या सरकारी संपत्ति चंद मुनाफाखोरो को बेचने के लिए?


                       भाई साहब जहाँ तक मेरा मानना है की यदि आपकी कोई फसल ख़राब है तो आप उसे खेत में ये सोच कर  खड़ी  नहीं रहने देंगे की कोई बात नहीं जो भी मिलेगा उसे ले लेंगे।  बल्कि यदि आपको लगेगा की उसे हटाकर कोई और फसल बोयेंगे। 
                      इसी प्रकार हम जानते है की जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब भारत पर काफी कर्ज था और आर्थिक हालत बहुत ही ख़राब थे।  साथ ही हम ये भी जानते है की तब भारत के पास कोई मजबूत आर्थिक ढांचे भी नहीं थे।  कुछ एक उद्योगपतियों को छोड़ दे तो लोगो की छमता उद्योग लगाने की नहीं थी।  इसलिए भारत सरकार ने वैश्विक संस्थाओं और करो के माध्यम से उद्योग खड़े किये जिसे आज आप सरकारी संसथान कहते है।  इनके उदाहरण GAIL , SAIL BPCL  और नवरत्न , मिनिनवरत्न कम्पनियाँ  है।  बाद में जब इनको फंडिंग की आवश्यकता हुई तो सरकार द्वारा इनमे विदेशी-देशी कॉर्पोरेट निवेश करवाया गया और कुछ कम्पनियो को निगम और PSU  में कन्वर्ट कर दिया गया।  
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                      परन्तु हम सभी जानते है की हम सभी सरकारी नौकरी चाहते है परन्तु अपने लिए सुविधाएं प्राइवेट चाहते है। एक सरकारी स्कूल का अध्यापक भी अपने बच्चो को दिल्ली पब्लिक स्कूल ,या DAV  जैसे निजी स्कूल में पढ़ाना  चाहता है ,ठीक इसी प्रकार  सरकारी अस्पताल का डॉक्टर अपने बच्चे का इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल में करवाना चाहता है। ये तो बस उदहारण है।  इसके ऊपर वैसे भी आपको काफी कुछ पढ़ने  को मिल जायेगा।  
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                      भाई फिर मुद्दे पर आते है की हम सब जानते है की भारत की लगभग सभी सरकारी कम्पनिया घाटे में है। और अब भारत सरकार  द्वारा सही कदम उठाया जा रहा है जिसे विनिवेश कहते है भरत सरकार  सभी घाटे वाली कंपनियां को या तो बेचना चाहती है या अपना हिस्सा कम करना चाहती है तो इसमें गलत क्या है 
सरकारी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी भरी भरकम वेतन पर मिनिमम इनपुट देते है।  यहाँ हो सकता है मई गलत होउ  पर ज्यादातर सरकारी कर्मचारियों की यही दिनचर्या है।  यहाँ हम बीएसएनएल का उदहारण लेंगे की बीएसएनएल के कर्मचारी वेतन कभुगतन न होने की बात करते है। 
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 पर ये भूल जाते है की बीएसएनएल भारत की एक मात्र टेलिकॉम कंपनी थी पर उनके ऑफिस में आकर ग्राहक परेशां हो जाता था इसी का लाभ प्राइवेट टेलीकोम कंपनियों ने उठाया और आज बीएसएनएल हाशिये पर चली गई इसके जिम्मेवार वो स्वयं है। इसी कारण  भाई साहब नहीं लगेगा अब अपनी आखिरी सांसे गईं रहा है  और सरकार ये मदद की उम्मीद कर रहे है और जैसा की अब हम जानते है की बीजेपी की सरकार है।  जो निक्कम्मो को बर्दाश्त नहीं करती है और अगर वो इस बीमारू संस्था का निजीकरण करती है तो क्या गलत है। ऐसे ही बहुत उदहारण है। तो अब ये आपको बताना है की क्या सरकार इन्हे बेचकर गलत कर रही या नहीं। 

धन्यवाद

-विनय सेंगर  लिंक -VINAY SENGAR
सभी  पिक्चर :- गूगल से साभार 
   
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