एक आँसू

                                                                             एक आँसू 
दूर और पास के दरमियाँ  बैठी ये पलके 
गयी नजदीक दुरी के तो इनमे शबनमी मोती छलके 
पलकों में सजाये बैठे है जाने क्या-२ सपने 
एक भी जो टूट जाये मोती  टप -टप पलकों से टपके 

आंसू  बैठे है पलकों पर पहरेदार से 
 दे जब-जब कोई करीब से 
इसे गंगाजल से नहलाये 
दिन भर खुला रहा दरवाजा आया न कोई 
रातो को छलते है फिर क्यों सपने हरजाई 

शर्मीले भी है ये हद ही 
कभी समां जाये पलकों में 
कभी घुट के रह जाये आँखों में 
लेकिन निकले जब भी घर से 
हो जाये दिलो के बोझ  कुछ हलके 

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हर रिश्तो को जोड़े ये पानी 
टूटे दिलो पे  करता आया है सदियों से  मेहरबानी 
तुम्हारी आँखों से बहता है 
 टीस उठती है यहाँ दिल में 
बिन डोर के बंधे है ये रिश्ते कैसे

आंसुओ  की भाषा है निराली 
पढ़ न पाया मई कुछ भी मगर समझ रहा हूँ कुछ-कुछ 
लब्ज भी जो जाते है  बेअसर यहाँ आकर 
सुर्ख मगर कह जाती है सब कुछ 
इतना करीब वो आ बसा मन में 

कि पलकों में न समाये मूरत उसकी 
तू तो बस्ता है सबके मन में 
अपने आंसुओ से पूंछो वो बता देंगे 
कोई रोआ है तुम्हारे मन में 
कह रहा है वो सिसक सिसक कर 
घुटन है बहुत  मन-मंदिरो में 
बसा लो हमें अब अपने मन में 

धन्यवाद 


-विनय सेंगर 



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